मध्य प्रदेश के महू में 1891 को जन्मे बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की आज पुण्यतिथि है। आर्थिक और सामाजिक भेदभाव के साथ बचपन गुजारने के साथ बाबा साहेब को स्कूल में जात पात और छुआछूत जैसी घटनाओं का सामना भी करना पड़ा। इन सबके बावजूद भी उन्होंने अपनी मेहनत के बल पर 32 डिग्रियां हासिल की। उन्होंने डॉक्टरेट की डिग्री भी अपने नाम की और छुआछूत और जात पात का भेदभाव मिटाने के लिए इस दिशा में काम करना शुरू किया।
हर मायने में युवाओं के लिए मिसाल बन चुके बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर संविधान सभा के अध्यक्ष भी बने। डॉक्टर अंबेडकर की पुण्यतिथि को महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसके पीछे का उद्देश्य बाबा साहेब को श्रद्धांजलि देना है।
महापरिनिर्वाण का अर्थ होता है मृत्यु के बाद निर्वाण होना। यह बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धांतों में से एक है जिसके मुताबिक जो भी व्यक्ति निर्वाण करता है वो संसार में मौजूद सभी मोहमाया और इच्छा से दूर रहता है। लेकिन इसे हासिल करना आसान नहीं है इसके लिए सदाचारी और धर्म सम्मत जीवन यापन करना होता है।
डॉ अंबेडकर ने दलित वर्ग की स्थिति को सुधारने के लिए बहुत काम किया। उन्होंने समाज से छुआछूत के प्रभाव को खत्म करने में बहुत योगदान दिया। बौद्ध धर्म के जो अनुयाई हैं उनका कहना है कि उनके गुरु बौद्ध भी डॉक्टर अंबेडकर की तरह सदाचारी थे। उनके मुताबिक डॉक्टर अंबेडकर ने भी अपने कामों से निर्वाण प्राप्त कर लिया है इसलिए उनकी पुण्यतिथि को महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है।
बता दें कि 14 अक्टूबर 1956 को डॉ भीमराव अंबेडकर ने बौद्ध धर्म अपनाया था। कई सालों तक उन्होंने बौद्ध धर्म का अध्ययन किया और उनके निधन के बाद इसी धर्म के अनुसार उनका अंतिम संस्कार किया गया था। मुंबई के दादर में जिस जगह उनका अंतिम संस्कार किया गया था उस जगह को अब चैत्यभूमी के नाम से जाना जाता है।
साहेब अंबेडकर की पुण्यतिथि पर मनाए जाने वाले इस महापरिनिर्वाण दिवस पर उनकी प्रतिमा पर फूल माला चढ़ाने के साथ दीपक और मोमबत्तियां जलाई जाती है। बड़ी संख्या में लोग चैत्य भूमी पर इकट्ठा होकर पवित्र गीत गाते हैं और बाबा साहेब की जय के नारे लगाते हैं।