श्रद्धा वाल्कर मर्डर केस ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है। इस को लेकर हर जगह यही सवाल देखा जा रहा है कि आरोपी आफताब पूनावाला को फांसी की सजा दी जाएगी या नहीं। इसी बीच यह देखने को भी मिला कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों को जेल की सजा से मुक्ति देते हुए छोड़ दिया गया। भले ही ये कितने भी साल बाद क्यों ना हुआ हो लेकिन कहीं ना कहीं ये बातें फिलहाल अपराध कर चुके लोगों कर गहरा असर डालती है कि पहली बार मानव बम का इस्तेमाल कर पूर्व प्रधानमंत्री को मारने वाले लोगों को आजाद कर दिया गया।
इस तरह की खबरों से आफताब पूनावाला जैसे लोगों के दिमाग पर अलग ही तरह का असर होता है। आफताब का केस कोई नया नहीं है इस तरह के मामले पहले भी हो चुके है। हमारे देश में फांसी की सजा दिया जाना एक सोचने वाली बात होती है। लेकिन एक इंसान जिसने अपने साथ रहने वाले शख्स के टुकड़े कर उसे बुरी मौत दी हो, हर कोई उसे सख्त से सख्त सजा देते हुए देखना चाहता है।
फांसी की सजा बहुत मुश्किल से दी जाती है या रेयर चीजों में दी जाती है। इस केस में भी कई रेयर बातें मौजूद हैं जैसे आफताब का उस घर को छोड़कर ना जाना जहां उसने श्रद्धा को खत्म किया ताकि वो ये बता सके कि श्रद्धा कही चली गई है। अपने इस अपराध में एक एक चीज को उसने सोची समझी साजिश के तहत अंजाम दिया। पुलिस की पूछताछ में मदद करना, सोशल मीडिया पर श्रद्धा से जुड़ी चीज अपडेट करना ये सब साबित करता है कि ये सोचा समझा प्लान था। ऐसे में वो जानता था कि उसे इस हत्या को किस तरह से अंजाम देना है और आगे कैसा बर्ताव करना है।
आफताब शायद अपनी गिरफ्तारी की बात भी पहले से सोच चुका था इसलिए उसकी बॉडी लैंग्वेज हमेशा शांत दिखाई देती है।नार्को टेस्ट, पॉलीग्राफी टेस्ट सब में वो शांत रहा। इस मर्डर के अलावा उसने हिमाचल के जाकर श्रद्धा को पहाड़ी से धक्का देने के बारे में भी सोचा था ताकि उस पर शक ना आए। उसने है वो तरीका अपनाने पर ध्यान दिया जो उसके लिए सेफ थे। इसलिए ये लगता है कि शायद अपराधियों को फांसी का डर नहीं है और वो ये सोचते है कि भीड़ में वो कही खो जाएंगे और कानून की सुनवाई में 10 15 साल निकल जाएंगे। लेकिन बात वहीं आकर रुक जाती है कि फांसी मुश्किल है और दी जाएगी या नहीं और कानून का खौफ है या नहीं। ये कहीं न कहीं सारे लोगों की सुरक्षा पर सवाल खड़ा करता है।