महिलाओं को शिक्षा का अधिकार दिलाने वाली सावित्री बाई फुले जाना पहचाना नाम हैं। महाराष्ट्र के सतार के नायगांव में जनवरी 1831 को सावित्रीबाई फुले का जन्म हुआ। 9 साल की उम्र में सावित्रीबाई फुले की शादी ज्योतिराव फुले से हो गई। उनकी जब शादी हुई वो पढ़ना लिखना नहीं जानती थी वो उस समय दलितों के साथ भेदभाव भी होता था लेकिन उन्होंने ने मन में ठान लिया कि वह पढ़ाई जरूर करेगी चाहे कुछ भी हो जाए। इस तरह से वो देश की पहली शिक्षिका बनी। उन्होंने देश के पहले बालिका विद्यालय और किसान स्कूल की स्थापना की।
उनके पति ज्योतिराव को बाद में ज्योतिबा के नाम से पहचाना जाने लगा और उन्होंने सावित्रीबाई के गुरु, संरक्षक और समर्थक की भूमिका निभाई। सावित्रीबाई ने अपनी जिंदगी एक मिशन की तरह जी और कई उद्देश्यों को पूरा किया। ज्योतिबा उनके लिए हमेशा ढाल बनकर उनके साथ खड़े रहे। सावित्रीबाई फुले का जीवन ये सीखता है कि अगर जीवन में कुछ ठाना है तो उसे हर कीमत पर हासिल करना चाहिए।
सावित्रीबाई फुले के समाज के लिए काम करने के दौरान जाति प्रथा भी काफी प्रचलन में थी। तब उन्होंने अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा दिया और नए कदम उठाए। उन्होंने अपने पति के साथ ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना की को बिना पुजारी और दहेज के शादी करता था।
सब कुछ ठीक था लेकिन 1897 में पुणे में प्लेग बीमारी फैल है जिसकी चपेट में आ जाने से 10 मार्च 1897 को 66 साल की उम्र में सावित्रीबाई फुले का निधन हो गया। आज वो भले ही इस दुनिया में नहीं है लेकिन उनके बलिदान और समाज सुधारक काम की वजह से आज भी वो लोगों के दिलों में जिंदा हैं।