हिजाब पर बवाल धर्म की दुकान और हमारा पतन



Updated: 10 February, 2022 10:34 pm IST

दोस्तो, जब से हिजाब वाली कंट्रोवर्सी शुरू हुई है, बहुत सारे मैसेज मुझे आ रहे हैं, जिसमें मुझसे बार-बार पूछा जाता है कि इस मामले में मेरे क्या विचार हैं? मैं इस मामले पर कई सारे ट्वीट्स कर चुका हूं, जिन्हें आप मेरे ट्वीटर हैंडल पर जाकर देख सकते हैं। लेकिन जो लोग सिर्फ यूट्यूब और फेसबुक पर जुड़े हुए हैं, उनको मैं बता दूं कि जिस दिन हम अपने धर्म की दुकान सजा लेते हैं, हमारा पतन होना शुरू हो जाता है, जिस दिन धर्म के आधार पर देश का बंटवारा हो जाता है, पतन शुरू हो जाता है, जिस दिन धर्म के आधार पर राजनीति होने लगे, वोट मांगे जाने लगें, दुकानें खोली जाने लगे, पतन शुरू हो जाता है। कौन क्या पहनता है, क्या नहीं पहनता है, यह एक अलग बात है।

अगर बच्चे स्कूल जा रहे हैं तो उनके लिए एक अलग ड्रेस कोड होता है। यूनिफॉर्म, स्कूल के लिए इसलिए बनाया जाता है ताकि किसी तरह का भेदभाव न हो। कोई किस कैडर से आता है, किस कैटेगरी से आता है, कौन-से मोहल्ले से आता है, किस धर्म जाति या सम्प्रदाय से आता है, यह उस फर्क को मिटाने के लिए बनाया जाता है। लेकिन दुख की बात यह होती है कि यदि वहां पर भी धर्म की दुकान सजा ली जाए, धर्म को ब्रांड बनाकर पेश किया जाए, धर्म को वोट कमाने का जरिया बनाकर पेश किया जाए और ऐसी सोच भरी जाने लगे कम उम्र के बच्चों में तो यह निश्चित रूप से बहुत खराब माहौल पैदा करता है।

यह सारे मेरे व्यक्तिगत विचार हैं और मेरा मानना है कि धर्म का किसी भी तरह का दिखावा अनुचित है। आप धर्म में विश्वास करते हैं, कीजिए। लेकिन जिस दिन मैं किस धर्म मे विश्वास रखता हूं, उससे मेरे पड़ोसी को फर्क पड़ने लगे या मुझे देखे जाने वाला नजरिया बदलने लगे, इस आधार पर कि मेरी आस्था और विश्वास कहां है, कहां नहीं तो निश्चित रूप से पतन होगा।

यह एक दिन की बात नहीं होती दोस्तो, यह कई नस्लों, कई पीढ़ियों तक जाता है, यह हमने देखा है। धर्म और भाषा के नाम पर जब बांटा जाता है तो सिर्फ आप बंटते चले जाते हैं। टुकड़े टुकड़े होते चले जाते हैं। इसलिए बहुत जरूरी होता है कि आप जिस भी धर्म में विश्वास रखते हैं, जिस भी मान्यता को मानते हैं, जिस भी सम्प्रदाय से आप ताल्लुक रखते हैं, फॉलो करते हैं, उसे आप अपने दिल के कोने में रखें, उसका प्रचार प्रसार न करें। वह कोई ब्रांड नहीं है कि आपने कौन-सा ब्रांड पहना है।

जैसे होता है न कि हाथ में आप कौन-सा फोन लेकर चल रहे हैं या कौन-सा शर्ट या कौन-सी जीन्स या कौन-सा जूता पहनकर चल रहे हैं। यह कोई ब्रांड नहीं है, जिसे आप शो ऑफ कर रहे हैं। यह आपकी आस्था है, आपका एक विश्वास है। आपके मन में जो एक ज्योति जलती है, जो आपको उस ऊपर वाले से बांधकर रखती है, उसे आप कोई भी नाम दे दें। अगर आप उसके नाम पर प्रचार करना शुरू करें कि मैं फलां ब्रांड में विश्वास रखता हूं और उसका प्रचार शुरू करें, तो यकीन मानिए आप खुद ही अपना पतन कर रहे होते हैं।

एक और बात। बहुत से लोग इस बात से खुश हो जाते हैं कि मैं फलां धर्म में विश्वास रखता हूं और फलां व्यक्ति उस धर्म की तारीफ कर रहा है। याद रखिए अगर आप किसी धर्म में विश्वास करते हैं तो फिर आपको उस पर किसी की मुहर की जरूरत नहीं होती। किसी स्टाम्प की जरूरत नहीं होती। किसी थर्ड पार्टी के अप्रूवल की जरूरत नहीं होती। वह आपके और उस ऊपर वाले के बीच का मामला है। उसे अपने और उस ऊपर वाले के बीच में ही रहने दीजिए। अपने और उस ऊपर वाले के बीच में किसी और को मत आने दीजिए। किसी और को बेचने भी मत दीजिए, किसी और को दुकान भी मत सजाने दीजिए। तमाम तरह की बातें होती हैं। तमाम तरह के आरोप-प्रत्यारोप लगाए जाते हैं, पर आपकी आस्था, आपका विश्वास पक्का है तो उसे कोई डिगा नहीं सकता। कोई भी मुहर आपके उस विश्वास से बड़ी और पक्की नहीं हो सकती।

यह मेरे निजी विचार हैं। उम्मीद है आपको मेरी बात समझ में आ गई होगी। हम यहां दुकान सजाने नहीं आए हैं,  अपने मन को दृढ़ करने आए हैं कि आपके मन में जिस भी आस्था से, जिस भी विश्वास से दृढ़ता बढ़ती है और जिससे आपको अपने अंदर एक शक्ति का अहसास होता हो, वह सबसे श्रेष्ठ है और फिर उसका प्रचार क्यों करना। यदि प्रचार करना है तो फिर आप उन अच्छे विचारों का कीजिए, न कि उस ब्रांड का जिससे भेदभाव बढ़े। मैं चाहता हूं कि आप लोग इस पर जो भी विचार रखते हैं, वह मेरे साथ शेयर कर सकते हैं।

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