ये ब्लॉग मैं बिल्कुल भी लिखना नहीं चाहता लेकिन मजबूर होकर लिखना पड़ा और मजबूरी इसलिए है क्योंकि कुछ लोगों को वह दिख रहा है, जो दिखाया जा रहा है। आप सभी जानते हैं कि थूक और फूंक का फर्क भूल गया है, हमारे देश का आम आदमी। एक तस्वीर में दिखाया जाता है कि शाहरुख खान जाते हैं, लता दीदी के फ्यूनरल पर और वहां पर वह दुआ पढ़ते हैं और दुआ पढ़ने के बाद जैसे कि फूंका जाता है और आपने नई जानकारी हासिल की हो तो आप जहां से भी चाहे जैसे भी चाहे वैसे पूछ सकते हैं कि दुआ पढ़ी जाती है, उसके बाद फूंका जाता है। लेकिन लोगों ने उसके ऊपर बवाल करना शुरू कर दिया।
लोग पूछ रहे हैं कि शाहरुख थूक क्यों रहे हैं? क्या हमारा दिमाग इस हद तक बंद हो चुका है कि हमें लोग जो दिखाना चाहते हैं, वह हम देख लेते हैं लेकिन जो दिख रहा होता है उस पर अपनी अक्ल नहीं लगाते। बड़े-बड़े पढ़े-लिखे लोगों ने, बड़े-बड़े एडुकेटेड लोगों ने सोशल मीडिया पर बवाल मचाया हुआ है और इस बात को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं, कंट्रोवर्सीज की जा रही हैं।
सोशल मीडिया का इस्तेमाल यदि एक ठीक और सही कारण के लिए हो तब तो समझ मे आता है लेकिन आम जनता ही जब इस तरह के सवाल सोशल मीडिया पर पूछने लगे, वह भी चन्द लोगों के इशारे पर, तो फिर समझ पर शक होने लगता है और क्योंकि समझदारी और शक होता है, इसीलिए हमारे जैसे लोगो को आगे आना पड़ता है। कहना पड़ता है कि आप जो सोच रहे हैं वैसा बिल्कुल नहीं है।
जरूरी नहीं कि हर बात पर कंट्रोवर्सी की जाए। जरूरी नहीं होता कि आप वही देखें जो आपको कोई दिखाना चाहता है। बल्कि होना यह चाहिए कि जो हो रहा है, उसे आप अपने चश्मे से देखें। आप तस्वीरों को गौर से देख सकते हैं। दुआ पढ़ी जाती है और फिर फूंका जाता है। आज हम एक सवाल और यहां पूछना चाहते हैं कि हमारा दिमाग इस हद तक क्यों बन्द हो चुका है, क्यों हम हर चीज में वही ढूंढते हैं या फिर हम उस स्तर पर आ गए हैं कि हमारा दिमाग वही देखता है, जो हम देखना चाहते हैं। क्या हम यह देखना चाहते हैं, इसलिए कह रहे हैं या कुछ लोगों के इशारे पर कह रहे हैं, या हमने अपने दिमाग के दरवाजे बंद कर लिए हैं या 4 ट्वीट आते हैं तो पांचवा ट्वीट हम भी अपना उसमें जोड़ देते हैं कि हां यही हुआ होगा।
यह सब करने से पहले हम क्या सोचते हैं, समझते हैं और हम अगर इस बात की जरूरत समझते हैं कि इस तस्वीर पर बात होनी चाहिए तो सबसे पहले इस तस्वीर को साफ देखना चाहिए। जब आप तस्वीर देख ही नहीं पा रहे हैं तो आप उस पर कमेंट कैसे कर सकते हैं।
अगर एक व्यक्ति वहां जाकर दुआ पढ़कर फूंक रहा है, आप उस ओर सवाल कैसे उठा सकते हैं और अगर आपने यह सब करना शुरू कर दिया तो एक बात जरूर याद रखना कि एक वक्त ऐसा आएगा कि आप सोशल मीडिया पर शोर मचाते रहेंगे और उसका असर नहीं होगा क्योंकि लोगों को समझ मे आ जाएगा कि सोशल मीडिया पर तो इस तरह की कंट्रोवर्सीज क्रिएट की जाती हैं। अगर आप चाहते हैं, सोशल मीडिया जो प्लेटफॉर्म अगर आपको मिला है जहां पर आप सवाल कर सकते हैं, बात कह सकते हैं, उसकी मर्यादा बनी रहे तो कम से कम यह कीजिए कि जो दिख रहा है उसे ही देखिए।
ऐसा न हो कि कोई कुछ दिखाना चाहे, आप वह देखें। यह एजेंडे के तहत खबरें चलाना, ये एजेंडे के तहत झूठ को सच और सच को झूठ दिखाना, इस पर अगर रोक लगानी है तो इसकी शुरुआत आपको करनी होगी। दिखाने वाले तो अपने एजेंडे के तहत बहुत कुछ दिखाते हैं लेकिन यह आपकी ड्यूटी बनती है कि आप उसमें क्या देख रहे हैं क्योंकि सच यदि दिखाया नहीं जा रहा तो उस सच को ढूंढना, तलाशना, उसका पीछा करना और उस सच को खींचकर लाना और उसे लोगों के सामने रखना यह फर्ज भी हमारा ही होता है।
सोशल मीडिया होता है अपनी बात कहने के लिए, तो बात कहने से पहले परख लीजिए कि वह बात सही है या नहीं है। अगर आपकी समझ में नहीं आ रहा है तो कुछ दिमाग दौड़ाइए। कोशिश कीजिए समझने की और फिर एक्सप्रेस कीजिए। ऐसा न हो कि आप बस भीड़ का हिस्सा बन जाएं। अगर 4 लोगों ने कोई बात कही तो पांचवे आप भी हों। उम्मीद है आपको मेरी बात समझ आई होगी। यहां कोई, कहीं नहीं थूक रहा है और इस तरह की बातें करना बंद कीजिए।
थूक और फूंक के फर्क को समझिए क्योंकि थूक और फूंक में बहुत फर्क होता है। यह फर्क शायद हम भूल गए हैं या फिर हमें ऐसी खबरें दिखाकर इस तरह के जो फर्क हैं, उन्हें समझना हमारे लिए मुश्किल कर दिया गया है। या कुछ ऐसे एजेंडे के तहत खबरें चलाई जाती हैं जिसमें हम वही चीजें देखते हैं जो वह लोग हमें दिखाना चाहते हैं। उम्मीद है आपको यह बात समझ आई होगी। इस तरह की जो खबरें हैं, उस पर आप विराम लगाएंगे तो ऐसे मुद्दे उठाए जा सकेंगे, जिन्हें वाकई उठाया जाना जरूरी है।