बॉलीवुड वर्सेज साउथ लंबे समय से चर्चा का मुद्दा बना हुआ है। जब यह मुद्दा सामने आता है तो यह कहा जाता है कि बॉलीवुड के सितारों को अपनी संस्कृति की परवाह नहीं है जबकि साउथ के सितारों को हमेशा वहां के कल्चर के हिसाब से रहते हुए देखा जाता है। उनकी पर्सनल लाइफ हो या फिर प्रोफेशनल वह कभी भी अपने कल्चर से बाहर आते नहीं दिखाई देते हैं।
लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि सिर्फ इन बातों के आधार पर साउथ को शरीफ नहीं कहा जा सकता है। जिस तरह का नेपोटिज्म बॉलीवुड में चलता है ठीक उसी तरह का साउथ में भी देखा जाता है। हमारे देश की बात करें तो ना सिर्फ बॉलीवुड या किसी और इंडस्ट्री बल्कि यहां तो राजनीति में भी नेपोटिज्म का ही दौर है इसके अलावा आम जनजीवन में भी कहीं ना कहीं नेपोटिज्म नजर आ ही जाता है। आसान भाषा में कहें तो डॉक्टर का बेटा भी डॉक्टर ही बनता है।
जिस तरह से बॉलीवुड में बड़ी-बड़ी पार्टियां और नशाखोरी वाली पार्टियां होने और उन पर रेड पड़ने की जानकारी हमें मिलती है। वैसे साउथ में क्या हो रहा है, हैदराबाद में क्या हुआ है यह जानकारी अक्सर हम तक नहीं आ पाती लेकिन यह सब चीजें हैं वहां भी होती हैं।
इन सभी सितारों को स्टार बनाने वाली जनता की इन्हें सही और गलत साबित करती हुई दिखाई देती है। लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि राजनेता यह जानते हैं कि उन्हें भाषण में क्या बोलना है और सितारे भी यह समझने लगे हैं कि उनकी कौन सी छवि जनता को पसंद आने वाली है। इसलिए यह जरूरी है कि सोचा जाएगी क्या सही है और क्या गलत है। आंख बंद कर किसी पर विश्वास करने और उसे सपोर्ट करने से पहले सच जानना जरूरी है क्योंकि बॉलीवुड हो या फिर साउथ हर जगह सिर्फ पैसे और मतलब की राजनीति होती दिखाई देती है। आप अपना पैसा लगा रहे हैं तो जरूर जांच लें कि उचित मनोरंजन मिल रहा है या नहीं।