सूर्यवंशी ने आपकी जेब से कमाए करोड़ों रुपए, कौन है जिम्मेदार?



Updated: 11 November, 2021 12:02 am IST
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दोस्तों लोकतंत्र में बड़ी ताकत होती है। लोकतंत्र में ताकत होती है यह बताने की, चीख-चीख कर कहने की कि वह चाहता क्या है? हमारे देश में जो भी होता है सब कुछ जनता की इच्छा से होता है। फिर चाहे करण जौहर, एकता कपूर को दी जा रही पद्मश्री पर उठे सवाल हों या फिर सूर्यवंशी के बॉक्स ऑफिस कलेक्शन को लेकर आ रही खबरें। यह वह बातें हैं, जो यह बताती है कि इस देश में होता वही है जो देश की जनता चाहती है और आखिर ऐसा हो भी क्यों न! हम संख्या में भी 130 करोड़ हैं, तो फिर सवाल किसी और से क्यों? तो कुछ सच ऐसे हैं जिन्हें स्वीकारना मुश्किल लगता है लेकिन वह ‘सच’ हैं, इसलिए उन्हें स्वीकारना चाहिए। ताकि हम समझ सकें कि जो हो रहा है वह आस-पास क्यों हो रहा है।

जब पद्मश्री को लेकर अनाउंसमेंट हुए तो बहुत से लोगों ने सवाल पूछे कि इसमें एकता कपूर का नाम क्यों है? कई लोगों ने उनके द्वारा बनाए गए शोज और उनके ऐप का हवाला भी दिया, जिसमें कुछ ऐसे शोज आते हैं जिन्हें आप अपने परिवार के साथ बैठकर नहीं देख सकते, लेकिन जितना सच यह है कि वह ऐसे शोज बनाती रही हैं, उतना ही सच यह भी है कि उन्हें इस देश ने पद्मश्री से नवाजा है। जितना सच यह है कि इस देश की जनता ‘बायकॉट बॉलीवुड’ कर रही है, उतना ही सच यह है कि इस देश में सूर्यवंशी अपना बिजनेस भी कर रही है। अगर यह सच है तो फिर इसे स्वीकारने में परहेज क्यों? क्योंकि यह सच हमारा अपना सच है, हमारे देश की जनता का सच है। यह किसी दूसरे प्लेनेट या किसी दूसरे देश की जनता का सच नहीं है।

मैं आपको यही बताने आया हूं कि सूर्यवंशी के बारे में जो खबरें आ रही हैं कि इसने चार दिन में 102.81 करोड़ रुपये कमाए और तान्हाजी (2020) के बाद 100 करोड़ क्लब में शामिल होने वाली पहली फिल्म बन गई है। दोस्तों यह भी हमारे देश का ही सच है। जैसा आपने कई बार सवाल पूछे कि क्यों दिया गया ऐसे लोगों को पद्मश्री, तो आप सवाल पूछ सकते हैं कि कौन हैं वह लोग जो सूर्यवंशी जैसी फिल्म देख रहे हैं क्योंकि इसी देश के लोग यह भी कह रहे हैं कि यह फिल्म घिसे-पिटे फॉर्मूले पर बनी है। इसमें कोई नयापन नहीं है। इसमें पैसों को बेवजह पानी की तरह बहाया गया है। वहीं कारों को उड़ाने के सिलसिले हैं। वही कारों को उड़ाने के घिसे-पिटे शॉट्स इस्तेमाल किए गए हैं। जो पिछले 10-12-15 सालों से किए जाते रहे हैं। लेकिन दोस्तों इसके बावजूद सच यह है कि देश की जनता यह देख रही है। इसका मतलब यह है कि देश की जनता यही डिजर्व करती है। आप और हम यही डिजर्व करते हैं।

हम जैसी चीजों को पसंद करते हैं, वैसी ही चीजें बार-बार लौटकर आती हैं। हम जैसे लोगों को पुरस्कार देते हैं, वैसे ही लोग बढ़ते जाते हैं। यह भी उतना ही सच है। इसलिए इस कड़वे सच को पहले स्वीकार कीजिए और फिर चेक कीजिए कि गलती कहां है, कमी कहां है। मैं आपके सामने खबर पढ़ रहा हूं। इस फिल्म सूर्यवंशी ने पहले दिन 26.29 करोड़ का ओपनिंग कलेक्शन किया था यानि 26 करोड़ 29 लाख रुपये पहले दिन कमाए थे। इसका मतलब यह कि हमारे देश की जनता ऐसी ही फिल्में डिजर्व करती हैं, हमारे देश की जनता इसी तरीके का बर्ताव डिजर्व करती है जैसा कि बॉलीवुड इसके साथ करता आ रहा है क्योंकि हमारे देश की जनता ने बॉलीवुड को इसी तरह से स्वीकारा है, इसी तरह से बनाया है और हम इसी तरह से ऐसे ही लोगों को पसंद करते आ रहे हैं। अब रिलीज के चार दिन बाद फिल्म ने 100 करोड़ से ऊपर की कमाई कर ली है। 102 करोड़ 81 लाख रुपये की यानी 100 करोड़ क्लब में जगह बना ली है। यानी हमारा देश चीख-चीख कर यह कह रहा है कि सूर्यवंशी जैसा सिनेमा ही हमारा देश डिजर्व करता है।

हमारे देश के लोगों की सोच-समझ और जानकारी का स्तर बौद्धिक स्तर वही है जो इस फिल्म को बना रहे लोगों का है। तो पहले तो यह एक्सेप्ट कीजिए क्योंकि यह हमारे-आपके बीच के लोग हैं, जो कहते हैं कि सिनेमा का स्तर सूर्यवंशी जैसा ही होना चाहिए। चूंकि आपने बनाया है इसे 100 करोड़ से ऊपर की फिल्म, इसलिए आप इसी तरह का ट्रीटमेंट डिजर्व करते हैं, आप इन्हीं चीजों को डिजर्व करते हैं। आप इसी देश का हिस्सा हैं और आपकी सोच भी बिल्कुल ऐसी है। यह मानकर चलिए, अगर आप इसमें सुधार लाना चाहते हैं तब भी, आप इसमें सुधार नहीं लाना चाहते हैं तब भी क्योंकि सच सच होता है। सच को स्वीकारना जरूरी है। सच कड़वा लग सकता है, सच बुरा लग सकता है, सच से आप मुंह छुपाने की कोशिश कर सकते हैं लेकिन सच अपनी जगह खड़ा रहता है। तो हमने जो बार-बार कहा और जो मुझसे बार-बार पूछा जाता है कि आप बॉलीवुड पर लगातार बात क्यों करते हैं तो यह जवाब सूर्यवंशी फिल्म दे रही है कि हमारे देश की जनता सूर्यवंशी जैसी फिल्में देखना चाहती है।

बॉलीवुड की फिल्मों का स्तर कितना ही गिरता क्यों न चला जाए लेकिन हमारे देश की जनता यही डिजर्व करती है और अब मैं इस सवाल के साथ आपको छोड़कर जा रहा हूं कि अगर हमारे देश के लोगों की सोच का स्तर ऐसा है कि वह ऐसी घिसी-पिटी फॉर्मूला फिल्मों को देखती है तो फिर आप सुधार की उम्मीद किससे और क्यों कर रहे हैं। यह मेरा सवाल आपसे है। यह सवाल मैंने पूछा है, जवाब आप देंगे। इंतजार कर रहा हूं मैं आपके इन सारे सवालों के जवाब का। 

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