हिंदी फिल्मों में अपनी खामोश दहाड़ से सबको चुप करा देने वाले शत्रुघ्न सिन्हा 1970 से 1975 तक कई फिल्मों में बतौर हीरो आ चुके थे, मगर उनके नाम पर कोई सोलो हिट नहीं थी। वह रात दिन मेहनत कर रहे थे और तीन-चार शिफ्टों में शूटिंग करते थे। दूसरी तरफ इसी दौर में सुभाष घई डायरेक्टर बनने की तैयारी कर रहे थे। उन्हें एन.एन. सिप्पी जैसा प्रोड्यूसर मिल चुका, जिन्हें घई की लिखी फिल्म कालीचरण की स्क्रिप्ट पसंद आई थी। घई ने साफ कह दिया था कि फिल्म के वही डायरेक्टर होंगे।
घई फिल्म में शत्रुघ्न सिन्हा को चाहते थे। मगर शत्रुघ्न तीन शिफ्टों में काम करते हुए मिलने का समय नहीं निकाल पा रहे थे। लेकिन एक रात को जब दो बजे शत्रुघ्न घर पहुंचे तो सुभाष घई बैठे मिले। आखिर नरेशन शुरू हुआ। एक तो शत्रुघ्न थके थे और दूसरे उन्हें कहानी में मजा नहीं आ रहा था। वह नरेशन सुनते हुए सो गए। बाद में भी उन्होंने कालीचरण में दिलचस्पी नहीं दिखाई। मगर तब प्रोड्यूसर एन.एन. सिप्पी बीच में आए और उन्होंने शत्रुघ्न से बात की। शत्रुघ्न सिन्हा इस बात पर राजी हुए कि सिप्पी उन्हें उनकी मार्किट प्राइस देंगे, मोल भाव नहीं करेंगे।
शत्रुघ्न सिन्हा की यह पहली फिल्म थी, जिसमें उन्हें पॉजिटिव रोल में लीड काम मिला था। जबकि घई डायरेक्शन में डेब्यू करने जा रहे थे। घई इसलिए शत्रुघ्न सिन्हा के पीछे थे क्योंकि वह उनकी पहुंच में थे। एक तो दोनों का पूना फिल्म इंस्टिट्यूट का परिचय था और दूसरे शत्रुघ्न की गर्लफ्रेंड, पूनम (जो बाद में उनकी पत्नी बनी) सुभाष घई की राखी बहन थीं। पूनम का स्क्रीन नाम कोमल था। शत्रुघ्न और कोमल 1973 में फिल्म सबक में साथ काम कर चुके थे। खैर, शूटिंग शुरू हुई तो घई के लिए शत्रुघ्न को संभालना मुश्किल हो गया। शत्रुघ्न सिन्हा सैट पर फिल्म की हीरोइन रीना रॉय के साथ ज्यादा समय साथ बिताते। इस पर घई अपनी राखी बहन को क्या जवाब देते। उधर शत्रुघ्न का कहना था कि रीना सुभाष घई को पसंद नहीं करती थीं। घई की रीना रॉय की छोटी बहन से नजदीकियां बढ़ गई थीं और यह बात एक्ट्रेस को पसंद नहीं थी। फिल्म पूरी हुई। हिट हुई। इससे सुभाष घई जम गए। उन्होंने शत्रुघ्न सिन्हा के साथ दो और फिल्में बनाई। विश्वनाथ और गौतम गोविंद। दोनों में रीना रॉय भी नजर आईं। मगर फिर सुभाष घई ने शत्रुघ्न सिन्हा के साथ काम नहीं करने की कसम खा ली। (यह तमाम जानकारियां पब्लिक डोमेन में उपलब्ध हैं)